भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रांतिकारी थे, जो विशेष रूप से हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) से जुड़े थे।
उनका जन्म 15 नवंबर 1903 को लाहौर (जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ था। वह एक ऐसे विचारक और कार्यकर्ता थे जिन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ सशस्त्र क्रांति का समर्थन किया और भगत सिंह तथा उनके साथियों के साथ मिलकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
यहाँ उनके बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है:
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:
भगवती चरण वोहरा का जन्म एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनके पिता, शिव चरण वोहरा, एक सरकारी अधिकारी थे।
उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लाहौर में पूरी की और बाद में नेशनल कॉलेज, लाहौर में अध्ययन किया, जहाँ उनका संपर्क भगत सिंह, सुखदेव और यशपाल जैसे युवा क्रांतिकारियों से हुआ।
कॉलेज के दौरान ही वे राष्ट्रवादी विचारों से प्रभावित हुए और क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने लगे।
क्रांतिकारी गतिविधियाँ और HSRA में भूमिका:
भगवती चरण वोहरा हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) के संस्थापक सदस्यों में से एक थे, जिसे बाद में चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह के नेतृत्व में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के रूप में पुनर्गठित किया गया।
वह HSRA के वैचारिक विंग के प्रमुख सदस्य थे। उन्हें संगठन के लिए घोषणापत्र और अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेज लिखने की जिम्मेदारी अक्सर दी जाती थी।
वे विशेष रूप से अपनी बौद्धिक क्षमता और लेखन कौशल के लिए जाने जाते थे।
महत्वपूर्ण योगदान और लेखन:
'द फिलॉसफी ऑफ द बम' (The Philosophy of the Bomb):
यह भगवती चरण वोहरा का सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण लेखन है। यह दस्तावेज 1929 में ब्रिटिश सरकार द्वारा 'लाहौर षड्यंत्र केस' के मुकदमे के दौरान जारी किया गया था। यह भगत सिंह और उनके साथियों द्वारा बम विस्फोट की घटनाओं को सही ठहराते हुए और क्रांति के पीछे के दर्शन को समझाते हुए एक विस्तृत वैचारिक स्पष्टीकरण था। इसमें बताया गया था कि बम हिंसा का साधन नहीं, बल्कि जनता को जगाने और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष को तेज करने का एक तरीका है। यह दस्तावेज़ क्रांतिकारियों के विचारों और उद्देश्यों को समझने में बहुत महत्वपूर्ण है।
लाहौर षड्यंत्र केस:
भगवती चरण वोहरा इस केस से जुड़े कई क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल थे, हालांकि उन्हें सीधे गिरफ्तार नहीं किया गया था।
दिल्ली असेंबली बम कांड (1929):
यद्यपि भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने बम फेंका था, लेकिन इस कार्रवाई की योजना बनाने में भगवती चरण वोहरा की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी।
शहीदी:
31 मई 1930 को, भगवती चरण वोहरा का निधन रावी नदी के किनारे, लाहौर में एक बम का परीक्षण करते समय दुर्घटनावश हो गया। वे लाहौर षड्यंत्र केस में गिरफ्तार अपने साथियों को जेल से छुड़ाने की योजना बना रहे थे, जिसके लिए उन्हें बमों की आवश्यकता थी। परीक्षण के दौरान ही बम फट गया और वे गंभीर रूप से घायल हो गए, जिससे उनकी मृत्यु हो गई।
उनकी मृत्यु भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक बड़ा झटका थी, क्योंकि उन्होंने एक बुद्धिजीवी और एक समर्पित क्रांतिकारी के रूप में अपनी एक विशेष पहचान बनाई थी।
विरासत:
भगवती चरण वोहरा को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक निडर और वैचारिक रूप से मजबूत क्रांतिकारी के रूप में याद किया जाता है।
उनका लेखन, विशेष रूप से 'द फिलॉसफी ऑफ द बम', आज भी भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के विचारों और आदर्शों को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
उन्होंने दिखाया कि क्रांति केवल हिंसा का कार्य नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक गहरा वैचारिक और दार्शनिक आधार भी होता है।
भगवती चरण वोहरा का जीवन और बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन गुमनाम नायकों में से एक है जिन्होंने अपनी जान देकर देश को आज़ादी दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।