Sunday, December 3, 2023

ज्योतिसर हरियाणा कुरुक्षेत्र गीता उपदेश स्थली

भगवान श्री कृष्ण द्वारा मोह में डूबे हुए अर्जुन को दिया गया दिव्य ज्ञान ही श्रीमद्भगवगीता के नाम से प्रसिद्ध हुआ। कौरवों और पांडवों के मध्य होने वाला धर्मयुद्ध, महाभारत का युद्ध कहलाया। उसी महाभारत के युद्ध में अपने सम्मुख खड़े हुए रिश्तेदारों और सगे-संबंधियों को देखकर जब महायोद्धा अर्जुन मोहग्रस्त हो गया और उसका मनोबल गिरने लगा, तब भगवान कृष्ण ने अर्जुन को कर्म योग,भक्ति योग और ज्ञान योग की विस्तृत और संपूर्ण जानकारी देते हुए जो उपदेश दिया। वही उपदेश परम पवित्र दिव्य वाणी ही श्रीमद्भगवदगीता कहलाई।

गीता जी का प्रकाटय लगभग 5000 वर्ष पूर्व भगवान श्री कृष्ण के श्री मुख से ज्योतिसर में एक दिव्य वट के नीचे मार्गशीर्ष मास, शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को हुआ।  ज्योतिसर हरियाणा प्रदेश के कुरुक्षेत्र जिले में एक छोटा-सा कस्बा है जो हिंदुओं की आस्था का केंद्र एवं पवित्र तीर्थ स्थल है। ज्योतिसर कुरुक्षेत्र शहर से लगभग 6 किलोमीटर दूर स्थित है।

ज्योतिसर दो शब्दों के मेल से बना है ज्योति+सर जिसका अर्थ है ज्योति का अर्थ प्रकाश, सर का अर्थ तालाब। इन्हीं 2 शब्दों के मेल से ज्योतिसर अपने आप में दिव्य स्थान कहलाता है। पौराणिक मान्यता है कि यहीं पर वह वट वृक्ष है जिसके नीचे भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया और विराट रूप के दर्शन करवाए थे।

भारतवर्ष में क्रमश: 5 पवित्र वटवृक्ष कहे गए हैं 

1. गृद्ध वट सोरों शूकर क्षेत्र (जहां पृथ्वी-वाराह संवाद हुआ था),

2. अक्षय वट प्रयाग,

3. सिद्धवट उज्जैन ,

4. वंशीवट वृंदावन  और  

5. दिव्य वट ज्योतिसर कुरुक्षेत्र। 


यह वटवृक्ष श्रीमद्भगवद्गीता की उत्पत्ति का साक्षी है। ऐसी भी मान्यता है कि यहां पर ज्योतिसर नाम का जो तालाब है, उस तालाब में सभी देवता प्रकट हुए थे और उन्होंने भगवान के  विराट स्वरूप के दर्शन किए थे। यह अक्षय वट और सरोवर श्रीमदभगवद गीता के साक्षात साक्षी हैं।

भगवान श्रीकृष्ण के श्री मुख से प्रकट हुई श्रीमद्भगवद गीता की उत्पत्ति देव भाषा संस्कृत में हुई। अद्वैतवाद के संस्थापक महॢष वेदव्यास जी द्वारा इसकी रचना की गई । गीता जी की गणना उपनिषदों में की जाती है। गीता जी के ज्ञान को अर्जुन के अतिरिक्त संजय ने सुना और धृतराष्ट्र को सुनाया। गीता में अठारह अध्याय हैं 

ज्योतिसर में भगवान कृष्ण की 40 फीट की 'विराट स्वरूप' प्रतिमा की स्थापना की गई है

करीब 35 टन वजनी 'विराट स्वरूप' प्रतिमा चार प्रकार की धातुओं के मिश्रण से बनी है, जिसमें 85 प्रतिशत तांबा और 15 प्रतिशत अन्य धातुएं हैं। मूर्ति में भगवान कृष्ण के नौ रूपों को दर्शाया गया है।


पास ही महाभारत के युद्ध के सजीव चित्रण के लिए महाभारत संग्रहालय का निर्माण किया जा रहा है


 

                  सोंथी रिजर्व फॉरेस्ट:

कुरुक्षेत्र में छिल छिला वाइल्ड लाइफ लगभग 28.92 हेक्टेयर भूमि में फैला हुआ हैं और यह कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के करीब स्थित है। इस अभयारण्य को सोंथी रिजर्व फॉरेस्ट के नाम से भी जाना जाता हैं। चिल्ला चिल्ला वाइल्ड लाइफ सेंचुरी में पक्षीयों की लगभग 57 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें प्रवासी और स्थानीय पक्षी दोनों शामिल हैं। इस आकर्षित स्थान को वर्ष 1986 में पक्षी अभयारण्य के रूप में अधिसूचित किया गया था।

 

                 लक्ष्मी नारायण मंदिर:

कुरुक्षेत्र का दर्शनीय लक्ष्मी नारायण मंदिर 18 वीं शताब्दी का मंदिर है। जोकि चोल राजवंश के शासनकाल के दौरान निर्मित किया गया था और भगवान श्री हरि नारायण और देवी लक्ष्मी को समर्पित है। इस मंदिर का बहुत अधिक महत्व माना जाता है। कहते यदि भक्त इस मंदिर में जाते हैं और मंदिर के चारों ओर सात चक्कर लगाते हैं तो उन्हें चार धाम की यात्रा करने की आवश्यकता नही होती हैं।


                     सन्निहित सरोवर:

सन्निहित सरोवर कुरुक्षेत्र भगवान विष्णु का स्थायी निवास माना जाता है

ऐसा माना जाता है कि तीर्थों की पूरी श्रृंखला यहां अमावस्या के दिन  इकट्ठा होती है, यदि कोई व्यक्ति सौर ग्रहण के समय श्राद्ध करता है और इसमें स्नान करता है, तो वह 1000 अश्वमेघ यज्ञ के फल प्राप्त करता है। सूर्य ग्रहण के समय, तीर्थयात्री इस पवित्र स्थान पर इकट्ठे होते हैं। दिलचस्प बात यह है कि इस जगह के आगंतुक पुरोहितों से स्थानीय रूप से जाने जाते हैं या स्थानीय रूप से पांडों के नाम से जाने जाते हैं, जो देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले तीर्थयात्रियों के रिकॉर्ड रखने वाले हैं।सिख गुरु भी समय-समय पर इस पवित्र स्थान पर गए हैं।


    अभिमन्युखेरा, अमीन गांव, कुरुक्षेत्र:

गांव का नाम अमीन, महाभारत के नायक अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु के नाम पर रखा गया है। इस गांव का प्राचीन स्थल 'अभिमन्युखेरा' के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह प्रसिद्ध चक्रव्यूह का स्थल है, जिसे कौरवों ने पांडवों से लड़ने के लिए रचा था। महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु इसी चक्रव्यूह में फंसकर वीरगति को प्राप्त हुआ था। टीले के आकार का यह प्राचीन स्थल 650x250 मीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ है। 10 मीटर की अधिकतम ऊंचाई के साथ. लगभग दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के यक्ष और अन्य सजावटी रूपांकनों से सुशोभित दो उत्कीर्ण लाल बलुआ पत्थर के स्तंभ यहां पाए गए थे और वर्तमान में राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में मूर्तिकला गैलरी में प्रदर्शित हैं।