Tuesday, December 12, 2023

मायरा की गुफा मेवाड़ Rajsthan

मेवाड़ी इतिहास को और उस से जुड़ी धरोहरों को जानने की जब बात आती है तो अधिकांशतः सभी के मन मे उदयपुर, चित्तौड़गढ़, कुम्भलगढ़ आदि प्रसिद्ध स्थानों का ही ख्याल आता है। लेकिन हकीकत में इन प्रसिद्ध स्थानों के अलावा भी यहां मेवाड़ी इतिहास से जुड़ी इतनी विरासतें हैं जिनमें से अधिकतर के बारे में स्थानीय लोगों को भी जानकारी नही होती है।


ऐसा ही एक स्थान है मायरा की गुफा...

मायरा की गुफा वह स्थान है जहां महाराणा प्रताप ने मुगलों के साथ युद्ध के बाद अपना जीवन गुज़ारा था।  महाराणा प्रताप ने मेवाड़ की आज़ादी तक जंगलों में रहने की प्रतिज्ञा के बाद मेवाड़ में अनेकों स्थानों पर अपना ठिकाना बनाया था।


उन्हीं स्थानों में से अपने शेष जीवन का अधिकांश समय यहीं व्यतीत किया था। यहीं पर महाराणा ने घास की रोटियां खाई थी और यहीं पर गुफा के एक हिस्से को अपना शस्त्रागार बनाया था।


यह गुफा उदयपुर से तकरीबन 42 किमी दूर गोगुन्दा से 8 किमी दूर हल्दीघाटी(लोसिंग) मार्ग पर ढुलावतों का गुड़ा के पास अरावली की खूबसूरत पहाडियो में स्थित है। यहां जाने के लिए लगभग 4 किमी तक पैदल चलना पड़ता है। यह गुफा एकदम छद्म परिवेश में स्थित है इसलिए इसी खासियत की वजह से इसका चयन महाराणा ने अपने निवास के लिए किया।


 इसकी खूबी यह है कि इसके शीर्ष पर से 10-12 किमी दूर तक नजर रखी जा सकती है, लेकिन इसके एकदम पास आ जाने पर 10-15 कदम दूरी से भी अनुमान नही लगाया जा सकता कि यहां कोई ढका छुपा स्थान भी है। गुफा को बाहर से देखने पर भी कोई मार्ग दिखाई नही पड़ता है। इसी वजह से यह स्थान हमेशा शत्रुओं से पूरी तरह सुरक्षित रहा।


यह गुफा अंदर से बहुत विस्तृत है और इसका आकार मानव शरीर के नसों के टेढ़े मेढ़े जाल या भूलभुलैया के समान है। इसलिए अगर इसमें कोई प्रवेश कर भी जाता तो उसके लिए सही रास्ता चुन पाना टेढ़ी खीर था। इसी वजह से मुगल सेना इस स्थान को कभी तलाश नही पाई।


गुफा के अंदर भोजन बनाने की भोजनशाला, शस्त्रागार, अश्वशाला, हिंगलाज माता जी का मंदिर आदि स्थित है। अश्वशाला में चेतक को रखा जाता था इसलिए यह स्थान आज भी पूजनीय माना जाता है। गुफा के बाहर की ओर एक छोटा सा शिवलिंग भी है।


इस गुफा से ऊपर की ओर मायरा का प्राकृतिक झरना भी बेहद खूबसूरत है और इन सुंदर वादियों में बेहद शानदार नज़ारे प्रस्तुत करता है, यहां जाने वालों को बारिश में ये सुंदर झरना भी अवश्य देखना चाहिए। 


इस गुफा का ऐतिहासिक महत्व इतना अधिक होने पर भी यहां की कठिन डगर और जानकारी की कमी की वजह से पहुंच पाना मुश्किल है, इसीलिए यहां पर्यटकों की भीड़ न के बराबर रहती है। यहां सिर्फ साधु संत रहते हैं जो अपने ध्यान आदि के लिए इस स्थान को सुगम मानते हैं।


यहां पहुंच पाना अपने आप मे बेहद रोमांचक है इसलिए बहुत से पर्यटक यहां रोमांच से भरपूर ट्रेकिंग के लिए भी आते हैं। इस अनमोल विरासत को सहेजने के प्रति सरकार द्वारा अब कदम उठाए जा रहे हैं और इसके जीर्णोद्धार के लिए योजनाएं बनाई जा रही है। जल्द ही यहां अधिक सुगमता से पहुंच पाना भी सम्भव हो जाएगा।

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