भगवान श्री कृष्ण के एक से बढ़कर एक, भक्त हुए हैं। जिनमें ध्रुव, प्रहलाद, सूरदास से लेकर रसखान व मीराबाई तक। जिनकी भक्ति की मिसाल हमेशा दी जाती है। भक्त वत्सल भगवान श्रीकृष्ण कब और किस पर कृपा कर दें। कहा नही जा सकता। भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति करने वाला, सदा ही प्रसन्न रहता है।
क्योंकि भगवान स्वयं आनन्द के स्वामी है। इसलिए उनके भक्त भी हमेशा आनंद में रहते हैं। इसलिए कृष्ण भक्ति पूरी दुनिया में, एक अलग ही पहचान बनाए हुए हैं। भगवान श्री कृष्ण की भक्ति करने वाले न केवल भारत में, बल्कि संपूर्ण विश्व में मौजूद हैं। सभी कृष्ण भक्तों उनकी भक्ति में इस तरह लीन हैं।
उन्होंने अपना जीवन ही सनातन धर्म को समर्पित कर दिया। इनमें से कुछ भक्त ऐसे भी हैं। जो अपने आप में, एक मिसाल है। यह एक ऐसे ही कृष्ण भक्त हैं। जिन्होंने अपना वैभवशाली जीवन श्री कृष्ण भगवान को समर्पित कर दिया। इसमें भी सबसे आश्चर्य की बात यह है। कि वह जन्म से ईसाई है।
लेकिन उन्होंने कृष्ण भक्ति के चलते न सिर्फ अपना धर्म बदला, बल्कि अपना नाम भी बदल दिया। इसके अलावा उनके किए गए कार्य को जानकर। आप भी कहने पर मजबूर हो जाएंगे। कि भक्त हो तो उनके जैसा। आप सभी ने फोर्ड कंपनी का नाम तो जरूर सुना होगा।
इस कंपनी की कार खरीदना, न सिर्फ भारत में। बल्कि दुनिया के तमाम देशों में बहुत गर्व की बात मानी जाती है। इस कंपनी के मालिक अल्फ्रेड फोर्ड है। जिन्हें अब अंबरीश दास के नाम से जाना जाता है। वे अब भारतवासी हो चुके है। कैसे वो Alfred Ford से अंबरीश दास बने ये जानना हर किसी के लिए रोचक है।
अल्फ्रेड फोर्ड का जन्म एक वैभवशाली व सम्पन्न परिवार में हुआ था। इनका पूरा नाम अल्फ्रेड ब्रेश फोर्ट है। इनका जन्म 22 फरवरी, 1950 को डेट्रॉइट, मिशिगन, यूनाइटेड स्टेट में हुआ। इनके पिता वाल्टर बी फोर्ड II एक बड़े उद्योगपति थे। जिनका केमिकल्स निर्माण का व्यवसाय था।
अल्फ्रेड की मां जोसेफिन क्ले फोर्ड, जो कि एडसेल फोर्ड की बेटी थीं। एडसेल फोर्ड कार निर्माता कंपनी ‘फोर्ड मोटर्स कंपनी’ के संस्थापक हेनरी फोर्ड के बेटे थे। अल्फ्रेड और उनके चचेरे भाई विलियम क्ले फोर्ड जूनियर वर्तमान में ‘फोर्ड मोटर कंपनी’ के कार्यकारी अध्यक्ष हैं।
अल्फ्रेड का जीवन बचपन से ही सभी प्रकार के भौतिक, आर्थिक व सामाजिक सुखों से भरपूर था। लेकिन उनके मन में, फिर भी एक खालीपन सा था। इसी खालीपन को दूर करने के लिए तथा मन की शांति को खोजते हुए। उन्होंने सन 1975 में, भारत की ओर रुख किया। जहां उनकी मुलाकात भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद जी से हुई। इसके बाद, तो उनका जीवन ही बदल गया।
सन 1974 में स्वामी श्रील प्रभुपाद से, अल्फ्रेड फोर्ड ने दीक्षा ली थी। वे 1975 में International Society of Krishna Consciousness (ISKCON) यानी कि ‘हरे कृष्ण मूवमेंट’ में शामिल हुए थे। इसी वर्ष उन्होंने स्वामी प्रभुपाद के साथ, अपनी भारत की पहली यात्रा की थी।
अल्फ्रेड फोर्ड का मानना है कि उन्होंने अपने जीवन के खालीपन को, श्रीकृष्ण भक्ति के जरिए भर लिया। चैतन्य महाप्रभु की धरती पर, मंदिर बनाने का सपना स्वामी श्रील प्रभुपाद जी का था। जिसका निर्माण करवाना, अल्फ्रेड अपना सौभाग्य मानते हैं।
अल्फ्रेड का कहना है कि हम सब ऐसी दुनिया में रहते हैं। जहां हर कोई महत्वाकांक्षी है। जहां ईर्ष्या है, लड़ाई है। लोग वह सब कुछ पाना चाहते हैं। जो उनके पास नहीं है। इसलिए इस भौतिक दुनिया में, हमेशा से प्रतिस्पर्धा रही है। लेकिन वह भूल जाते हैं कि संसार से उनके साथ कुछ भी नहीं जाता।
इसीलिए अल्फ्रेड और उनकी पत्नी, इस आध्यात्मिक में, मोह माया से दूर रहकर अधिक प्रसन्न है। उनका कहना है कि उनकी यह प्रसन्नता स्थाई है।
अल्फ्रेड कोर्ट ने कृष्ण भक्ति में लीन होकर, अपना नाम तक बदल लिया। उन्हें भारत में लोग, अंबरीश दास या अंबरीश प्रभु के नाम से जानते हैं। अब वह पूर्ण रुप से ईसाई धर्म को त्याग कर, हिंदू धर्म को अपना चुके हैं।
अल्फ्रेड फोर्ड का मानना है कि भारतवर्ष व इसके सभी राज्य बहुत ही खूबसूरत हैं। उन्होंने भारत के कई राज्यों में, इस्कान मंदिरों का निर्माण करवाया। इसके साथ ही उन्होंने विश्व के बहुत से देशों में भी, इस्कान मंदिरों की स्थापना की। इस कड़ी में उन्होंने सबसे पहले, अमेरिका के हवाई द्धीप में बने कृष्ण मंदिर के निर्माण में, आर्थिक मदद की थी।
इसके बाद उन्होंने अपने जन्म स्थान डेट्राइट शहर में, भक्तिवेदांता कल्चरल सेंटर के निर्माण के लिए। $500000 की सहायता की थी। इसका काम 1983 में पूरा हो गया था। अल्फ्रेड फोर्ड ने पिछले कुछ वर्षों में, इस्कॉन को बहुत से महत्वपूर्ण दान दिए हैं। उन्होंने प्रभुपाद के पुष्प समाधि मंदिर के निर्माण के लिए, चल रही परियोजनाओं में सहायता की है।
इसके अलावा उन्होंने रूस की राजधानी मास्को शहर में भी, वैदिक कल्चरल सेंटर के लिए, आर्थिक रूप से मदद की थी। होनोलूलू में भी हरेकृष्ण मंदिर व वैदिक सेंटर के लिए, $600000 से एक महल खरीदा था।
अल्फ्रेड कोर्ट ने भारत आकर, एक भारतीय महिला से विवाह किया। जिनका नाम शर्मिला फोर्ड है। इनकी दो बेटियां हैं। जिनका नाम अमृता फोर्ट व अनीशा फोर्ड है। अल्फ्रेड कोर्ट ने मायापुर में ही, अपना घर बनवाया है। जहां पर वह अपनी परिवार के साथ रहते हैं। इस तरह से कहा जाए। तो मायापुर अल्फ्रेड फोर्ड का दूसरा घर बन चुका है।
अल्फ्रेड फोर्ट के जन्म के बाद, उनके पास सभी तरह के ऐशो-आराम थे। जो किसी भी इंसान को, अपने जीवन में चाहिए होते हैं। लेकिन उन्हें अपने जीवन में, आंतरिक तौर पर, कुछ कमी महसूस होती थी। अल्फ्रेड फोर्ड का मानना है कि उन्होंने कृष्ण भक्ति से, इस कमी को दूर किया है। जो उनके जीवन का सबसे बड़ी कमी थी।
आज अल्फ्रेड फोर्ट पैंट-कोट छोड़कर, धोती कुर्ते को अपना चुके हैं। उनका रहन-सहन व पहनावा सादगी भरा है। अल्फ्रेड के एक हाथ में जपमाला और दूसरे हाथ में एक पोटली नजर आती है। वह कहीं भी हो। हमेशा कृष्ण नाम की माला जपते रहते हैं।
विश्व भर में इस्कॉन मंदिर के अलावा, अल्फ्रेड फोर्ड का एक सपना था। कि वह भगवान श्री कृष्ण का एक ऐसा मंदिर बनाए। जो विश्व में सबसे बड़ा व ऊंचा हो। इसके लिए उन्होंने 2009 में, टेम्पल ऑफ वैदिक प्लेनेटोरियम नामक प्रोजेक्ट शुरू किया।
अल्फ्रेड फोर्ट अपना सारा कारोबार छोड़कर, यह सपना लेकर भारत में आये। कि वह सबसे बड़े व ऊँचे गुंबद वाले भगवान कृष्ण के मंदिर का निर्माण करेंगें। जो कि दुनिया का सबसे ऊंचा कृष्ण मंदिर होगा। इस मंदिर का निर्माण कार्य 2010 में, पश्चिम बंगाल के मायापुर में शुरू हुआ था। अब तक मंदिर का 85% काम पूरा हो चुका है। यह मंदिर इसी वर्ष अर्थात 2022 में, पूरा होने की कगार पर है।
इसका नाम मायापुर चंद्रोदय मंदिर यानि टेम्पल ऑफ वैदिक प्लेनेटोरियम रखा गया है। । इस मंदिर की ऊंचाई लगभग 380 फुट है। अल्फ्रेड फोर्ट इस मंदिर के चेयरमैन भी हैं। इस मंदिर के लिए फोर्ड ने, लगभग 250 करोड़ रुपए दान किए थे। शेष बाकी रकम चंदे के द्वारा इकट्ठा की गई थी। इस मंदिर के निर्माण का उद्देश, पूरे विश्व में वैदिक संस्कृति और ज्ञान का प्रचार-प्रसार करना है।
चंद्रोदय मंदिर की ऊंचाई 380 फुट है। इस मंदिर में विशेष रुप से पोलोनियम संगमरमर का इस्तेमाल किया गया। यह मंदिर में, पश्चिमी वास्तुकला को दर्शाता है। इस मंदिर की हर एक मंजिल, अपने आप में कुछ खासियत रखती है। क्योंकि हर मंजिल का अनुपात पूरे 100000 वर्ग फुट का होगा।
यह मंदिर पूर्व और पश्चिम का मिश्रण है। मंदिर में 20 मीटर लंबा वैदिक झूमर भी लगाया जाएगा। यह मंदिर सात मंजिला है। ऐसा कहा गया है कि मंदिर की प्रथम मंजिल में पुजारी तल है। जिसमें एक साथ, एक समय पर लगभग 10,000 से अधिक श्रद्धालु बैठ सकते हैं। इस मंदिर में अलग-अलग देशों से लाए गए संगमरमर को लगाया गया ।
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